SCO में भारत-पाकिस्तान आमने-सामने: जयशंकर-डार एक ही मंच पर, चीन ने भी पड़ोसी रिश्तों पर दिखाई नरमी

शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) 2025 की बैठक में वह दृश्य सामने आया जिसने पूरे दक्षिण एशिया के कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी — भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और पाकिस्तान के वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगजेब डार एक ही मंच पर आमने-सामने नजर आए। लंबे समय से चल रहे तनाव, कश्मीर विवाद, सीमा संघर्ष और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर दोनों देशों के संबंध लगभग जमी हुए थे, लेकिन इस बैठक ने संकेत दिया कि शायद कूटनीति के बंद दरवाज़े धीरे-धीरे खुलने लगे हैं। हालांकि कोई औपचारिक द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई, लेकिन दोनों प्रतिनिधियों की मंच पर मौजूदगी ही इस बात की प्रतीक बन गई कि संवाद की संभावना अभी खत्म नहीं हुई है। इसी समिट में चीन ने भी चौंकाया, जो पिछले कुछ वर्षों से आक्रामक रवैया अपनाए हुए था, लेकिन इस बार “पड़ोसियों के साथ विश्वास और सहयोग” जैसे शब्दों के ज़रिए उसने नरम रुख दिखाया। यह बदलाव सिर्फ बयानबाज़ी नहीं लगती, बल्कि चीन की वैश्विक दबावों और आर्थिक समीकरणों को समझने की रणनीति का हिस्सा लगती है। SCO अब एक मात्र सुरक्षा मंच नहीं रहा, बल्कि ऊर्जा, व्यापार, संस्कृति और रणनीतिक संबंधों का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है, जहां भारत अपनी बहुपक्षीय कूटनीति को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। भारत के लिए यह मंच पाकिस्तान के साथ सीधे संवाद के बजाय अंतरराष्ट्रीय दबाव और समर्थन के साथ बात करने का ज़रिया बनता जा रहा है, जबकि चीन के साथ संबंधों को सामरिक संतुलन के दायरे में रखते हुए आगे बढ़ने की कोशिश की जा रही है। समिट की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि तीनों देशों ने एक मंच पर शांतिपूर्वक अपने-अपने विचार रखे — यही आज की कूटनीति की सबसे प्रभावशाली ताकत है: प्रत्यक्ष युद्ध नहीं, परोक्ष संवाद और रणनीतिक धैर्य। यह समिट बताती है कि एशिया में शक्ति का संतुलन अब तलवारों से नहीं, शब्दों से तय होगा।

 

 

चीन का बदलता रवैया: नरमी या रणनीति?

SCO समिट में इस बार चीन का रुख असाधारण रूप से संतुलित नजर आया। चीन के प्रतिनिधियों ने बार-बार “पड़ोसी राष्ट्रों के साथ सहयोग” की बात दोहराई। भारत-चीन के बीच हालिया सीमा तनाव के बाद इस तरह की बयानबाज़ी यह संकेत देती है कि बीजिंग अपनी रणनीति को सॉफ्ट-पावर की दिशा में मोड़ने की कोशिश कर रहा है — शायद आर्थिक दबावों और वैश्विक छवि सुधारने के इरादे से।

SCO – बदलती भूमिका, बढ़ती जिम्मेदारी

SCO अब सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ साझा मंच नहीं रहा। यह अब ऊर्जा, आर्थिक साझेदारी, कनेक्टिविटी और भू-राजनीतिक संतुलन का भी केंद्र बन गया है। भारत इस मंच के ज़रिए न सिर्फ पाकिस्तान के साथ बैकडोर कूटनीति कर सकता है, बल्कि चीन जैसे देशों के साथ रणनीतिक वार्ता की ज़मीन भी तैयार कर सकता है।

Smart Takeaway:

SCO समिट 2025 ने ये साबित कर दिया कि वैश्विक राजनीति अब सीधी टकराव की राह नहीं, बल्कि स्मार्ट रणनीति और बैलेंस्ड डिप्लोमेसी की तरफ बढ़ रही है। भारत-पाकिस्तान की मौजूदगी और चीन का नरम लहजा दर्शाता है कि एशिया की राजनीति में संवाद, टकराव से अधिक महत्वपूर्ण हो रहा है।

इस मंच की हर हलचल अब सिर्फ तस्वीरें नहीं, भविष्य की संभावनाएं गढ़ रही हैं। सवाल यह नहीं कि कौन किससे मिला — असली सवाल यह है कि कौन अब किससे बचना नहीं चाहता।

निष्कर्ष:
SCO समिट में भारत और पाकिस्तान का आमने-सामने आना जहां एक ओर भू-राजनीतिक जटिलताओं को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर संवाद की संभावना और क्षेत्रीय शांति के लिए उम्मीद की किरण भी जगाता है। चीन का नरम रुख इस ओर इशारा करता है कि अब बड़े देश भी तनाव नहीं, स्थायित्व और विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। आने वाले दिनों में इस मंच पर होने वाली हर गतिविधि दक्षिण एशिया की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।

 

 

 

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