Counting For JNU Students’ Union Elections: नतीजे कल तक आने की उम्मीद
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दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में छात्र राजनीति का माहौल एक बार फिर गरमाया हुआ है। लंबे इंतजार के बाद जेएनयू छात्रसंघ चुनावों की मतगणना बुधवार को शुरू हो चुकी है और सभी की निगाहें अब कल घोषित होने वाले नतीजों पर टिकी हैं। इस बार का चुनाव कई मायनों में खास माना जा रहा है—क्योंकि यह विश्वविद्यालय की वैचारिक राजनीति, छात्र संगठनों की ताकत और राष्ट्रीय स्तर पर छात्र राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
मतगणना केंद्रों पर कड़ी सुरक्षा
विश्वविद्यालय प्रशासन ने मतगणना प्रक्रिया को सुचारू और निष्पक्ष बनाने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। कैंपस में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती बढ़ा दी गई है ताकि किसी तरह की अनावश्यक भीड़ या विवाद से बचा जा सके। मतगणना स्थल पर केवल अधिकृत प्रतिनिधियों और पर्यवेक्षकों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई है। इस बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के बजाय पारंपरिक बैलेट पेपर से मतदान कराया गया था, इसलिए गिनती की प्रक्रिया में समय लग रहा है।
छात्र संगठनों के बीच कड़ा मुकाबला
इस चुनाव में मुख्य मुकाबला लेफ्ट गठबंधन (AISF, SFI, AISA और DSF) और ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के बीच देखने को मिल रहा है। वहीं NSUI और BAPSA जैसे संगठन भी अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। पिछले कई वर्षों से जेएनयू में वामपंथी संगठनों का वर्चस्व रहा है, लेकिन इस बार एबीवीपी ने कैंपस में मजबूत प्रचार अभियान चलाकर मुकाबले को रोमांचक बना दिया है।
लेफ्ट गठबंधन ने शिक्षा में कटौती, फीस वृद्धि, और हॉस्टल सुविधाओं की बदहाली जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया, जबकि एबीवीपी ने राष्ट्रवाद, छात्र कल्याण योजनाओं और कैंपस में “समान अवसर” की बात की। इस बार छात्र समुदाय में बेरोजगारी, शैक्षणिक माहौल, और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे भी प्रमुख रूप से चर्चा में रहे।
मतदान में उत्साह
इस बार जेएनयू के चुनाव में छात्रों ने जबरदस्त उत्साह दिखाया। पिछले कुछ वर्षों की तुलना में वोटिंग प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया। छात्र मतदान के दिन लंबी कतारों में खड़े दिखे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी भागीदारी को लेकर उत्साहित नजर आए। कई छात्रों ने कहा कि यह चुनाव सिर्फ प्रतिनिधियों को चुनने का नहीं बल्कि विश्वविद्यालय की पहचान और दिशा तय करने का माध्यम है।
सोशल मीडिया पर गर्मागर्म बहस
मतगणना के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी चुनावी चर्चा चरम पर है। जेएनयू के छात्र ट्विटर (अब एक्स), इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लाइव अपडेट साझा कर रहे हैं। समर्थक संगठन अपनी-अपनी ओर से संभावित जीत के दावे कर रहे हैं। वहीं पूर्व छात्र नेता और राजनीतिक विश्लेषक भी इन चुनावों को देश की व्यापक छात्र राजनीति के संदर्भ में देख रहे हैं।
ऐतिहासिक महत्व
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव हमेशा से देशभर के विश्वविद्यालयों के लिए एक मिसाल रहे हैं। यहाँ की छात्र राजनीति ने समय-समय पर राष्ट्रीय मुद्दों को दिशा दी है। कन्हैया कुमार, शेहला रशीद, और आइशी घोष जैसे छात्र नेता यहीं से उभरकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बना चुके हैं। इसलिए हर साल का चुनाव केवल कैंपस तक सीमित नहीं रहता बल्कि इसका असर बाहर तक दिखाई देता है।
छात्र नेताओं के बयान
मतगणना के बीच उम्मीदवार और उनके समर्थक भी लगातार मतदाताओं से संपर्क में बने हुए हैं। वामपंथी उम्मीदवारों का कहना है कि जेएनयू की पहचान हमेशा प्रगतिशील रही है और छात्र उसे बनाए रखना चाहते हैं। वहीं एबीवीपी के प्रत्याशी इसे “विचारों की नई दिशा” के रूप में देख रहे हैं। उनका दावा है कि जेएनयू को अब ऐसी राजनीति की जरूरत है जो राष्ट्रहित के साथ छात्र हितों को भी प्राथमिकता दे।
विश्लेषण और संभावनाएं
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर इस बार एबीवीपी को अच्छी सीटें मिलती हैं, तो यह जेएनयू की पारंपरिक राजनीतिक प्रवृत्ति में बड़ा बदलाव साबित होगा। वहीं अगर लेफ्ट गठबंधन फिर से सत्ता में आता है, तो यह उनके वैचारिक प्रभुत्व की पुनः पुष्टि मानी जाएगी। परिणाम चाहे जो भी हों, एक बात तय है कि यह चुनाव कैंपस में छात्र लोकतंत्र की परंपरा को और मजबूत करेगा।
नतीजों पर टिकी निगाहें
अभी तक मिले शुरुआती रुझानों में दोनों प्रमुख गुटों के बीच कांटे की टक्कर नजर आ रही है। कई सीटों पर मामूली अंतर से बढ़त या पिछड़ने की स्थिति बनी हुई है। मतगणना के अंतिम चरण तक तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने आधिकारिक रूप से घोषणा की है कि अंतिम नतीजे कल यानी गुरुवार को जारी किए जाएंगे।
निष्कर्ष
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव सिर्फ एक कैंपस इवेंट नहीं, बल्कि यह देश के बौद्धिक और राजनीतिक वातावरण का प्रतिबिंब है। यहाँ होने वाले हर चुनाव में विचारों की टकराहट, लोकतंत्र की गूंज और समाज की नई दिशा की झलक दिखाई देती है। इस बार भी छात्र अपने प्रतिनिधियों को चुनकर एक संदेश देने जा रहे हैं—कि शिक्षा, समानता और अभिव्यक्ति की आज़ादी ही जेएनयू की असली ताकत है। कल आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि आने वाले वर्ष में यह ताकत किस दिशा में आगे बढ़ेगी।