Congress takes a dig at the Centre: ट्रंप के ‘भारत-पाकिस्तान शांति’ बयान पर छेड़ी नई बहस

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Congress takes a dig at the Centre

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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह बना उनका बयान जिसमें उन्होंने कहा कि वे “भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित कर सकते हैं।” यह बयान कोई नया नहीं है — ट्रंप इससे पहले भी कई बार ऐसा दावा कर चुके हैं। लेकिन जब यह बयान ‘58वीं बार’ सामने आया, तो भारत में राजनीतिक हलचल तेज हो गई। कांग्रेस ने इस मौके को भुनाते हुए केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि मोदी सरकार की विदेश नीति की “कमजोरियों” के कारण ही ऐसे बयान बार-बार सामने आते हैं।

ट्रंप का ‘शांति मिशन’ बयान और उसकी गूंज

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक अमेरिकी इंटरव्यू में कहा कि अगर वे दोबारा सत्ता में आते हैं तो “भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक शांति स्थापित कराएंगे।” उन्होंने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में पेश किया जो दुनिया के सबसे कठिन विवादों को सुलझा सकता है। हालांकि, भारत ने हमेशा से स्पष्ट किया है कि कश्मीर और भारत-पाकिस्तान से जुड़े सभी मुद्दे द्विपक्षीय हैं और किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है।

यह बयान आते ही भारतीय राजनीति में एक नई बहस शुरू हो गई। कांग्रेस ने इसे केंद्र सरकार की “कूटनीतिक असफलता” बताया। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “ट्रंप मित्रता” का परिणाम यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति लगातार इस तरह के बयान देने की हिम्मत कर रहे हैं।

कांग्रेस का तीखा पलटवार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा, “डोनाल्ड ट्रंप का यह 58वां बयान है जिसमें वे भारत-पाकिस्तान शांति की बात कर रहे हैं। यह बताता है कि मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे रुख को कितनी बार कमजोर दिखाया है।”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब मोदी सरकार खुद को “वैश्विक नेता” कहती है, तब आखिर क्यों बार-बार विदेशी नेता हमारे आंतरिक मुद्दों पर टिप्पणी करने की हिम्मत करते हैं?

कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार की विदेश नीति पूरी तरह “व्यक्तिगत प्रचार” पर आधारित है। पार्टी का कहना है कि मोदी ने अपने विदेश दौरों और विदेशी नेताओं के साथ रिश्तों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कीं, लेकिन परिणाम शून्य रहे। ट्रंप जैसे नेता बार-बार भारत के अंदरूनी मामलों में दखल की बात करते हैं और केंद्र सरकार सिर्फ चुप्पी साधे रहती है।

सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल

ट्रंप के इस बयान के बाद विदेश मंत्रालय की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। विपक्ष का कहना है कि सरकार की यह चुप्पी अपने आप में बहुत कुछ कहती है। कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “मोदी जी जब ट्रंप को ‘मित्र’ कहकर संबोधित करते थे, तब क्या उन्होंने कभी स्पष्ट किया था कि भारत के आंतरिक मामलों में किसी तीसरे देश का दखल स्वीकार नहीं होगा?”

उन्होंने आगे कहा कि “यह 58वां मौका है जब ट्रंप ने शांति की बात की है, लेकिन यह भी 58वां मौका है जब मोदी सरकार ने कुछ नहीं कहा।” विपक्ष के नेताओं का कहना है कि यह चुप्पी भारतीय कूटनीति की गंभीर कमजोरी को दर्शाती है।

ट्रंप और मोदी की दोस्ती की पृष्ठभूमि

2019 में जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने “Howdy Modi” कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच साझा किया था। उस समय दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की जमकर तारीफ की थी। ट्रंप ने मोदी को “सच्चा दोस्त” बताया था और मोदी ने भी ट्रंप को “भारत का सच्चा सहयोगी” कहा था।
हालांकि, उसी साल ट्रंप ने व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात के दौरान कहा था कि मोदी ने उन्हें “कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता” करने को कहा है — जिस पर भारत ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए इसे पूरी तरह झूठ बताया था।

विशेषज्ञों की राय

विदेश नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि ट्रंप अपनी चुनावी राजनीति के लिए अक्सर सनसनीखेज बयान देते रहते हैं। फिर भी, विपक्ष की आलोचना इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि सरकार की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं दिया जाता।
कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भारत को अपनी कूटनीतिक स्थिति को बार-बार स्पष्ट करना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भ्रम की स्थिति न बने।

सोशल मीडिया पर बहस

ट्रंप के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई। कुछ यूज़र्स ने ट्रंप की “58वीं बार शांति की बात” कहकर मज़ाक उड़ाया, तो कुछ ने सरकार से सवाल किए कि आखिर ऐसी बातें बार-बार क्यों होती हैं।
कांग्रेस नेताओं ने भी ट्रेंड चलाया — “#TrumpAgainOnIndiaPakistan” और “#ModiSilentAgain”, जिससे यह मामला और भी राजनीतिक रंग ले गया।

कांग्रेस बनाम भाजपा: बयानबाज़ी का दौर

जहां कांग्रेस ने केंद्र पर कूटनीतिक विफलता का आरोप लगाया, वहीं भाजपा ने जवाब में कहा कि विपक्ष “अमेरिकी बयानबाज़ी” को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है। भाजपा नेताओं ने कहा कि ट्रंप के बयान का कोई औपचारिक महत्व नहीं है और भारत की विदेश नीति पहले की तरह ही मजबूत है।
भाजपा प्रवक्ताओं ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि “जो पार्टी खुद पाकिस्तान के साथ बातचीत की वकालत करती है, वह आज हमें देशभक्ति सिखा रही है।”

निष्कर्ष: राजनीति में शांति का मुद्दा नहीं, सियासत का हथियार

ट्रंप के इस बयान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिए गए बयानों को भारत में राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कांग्रेस जहां केंद्र को घेरने में लगी है, वहीं भाजपा विपक्ष को “बयान की राजनीति” में उलझा हुआ बता रही है।
फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रंप का “भारत-पाकिस्तान शांति” वाला बयान सिर्फ अमेरिका में नहीं, बल्कि भारत की सियासत में भी एक नई हलचल का कारण बन गया है।

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