अमेरिका और भारत के बीच व्यापार संबंधों की जटिलता ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर ध्यान खींचा है। 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से भारत को लेकर एक स्पष्ट रणनीति अपनाई है — व्यापार समझौते के लिए दबाव। ट्रंप अपने पिछले कार्यकाल में भी भारत के साथ ट्रेड डील को लेकर सख्त रुख अपनाते रहे थे और अब एक बार फिर भारत को टैरिफ की धमकी के जरिए डील के लिए राज़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि ट्रंप किस तरह भारत पर दबाव बना रहे हैं, भारत की क्या प्रतिक्रिया है और इस पूरे घटनाक्रम का वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण से क्या महत्व है।
ट्रंप की रणनीति: टैरिफ के जरिए ट्रेड डील
डोनाल्ड ट्रंप का व्यापारिक दृष्टिकोण हमेशा “अमेरिका फर्स्ट” की नीति पर आधारित रहा है। भारत जैसे उभरते हुए बाजार से ट्रंप को उम्मीद है कि वह अमेरिकी उत्पादों के लिए बड़ा बाज़ार खोल सकता है। यही कारण है कि ट्रंप प्रशासन ने भारत को कई बार उच्च आयात शुल्क लगाने की चेतावनी दी है। हाल ही में ट्रंप ने यूरोप, ब्राजील और चीन के साथ टैरिफ युद्ध की बात कही, और इसी संदर्भ में भारत को भी अप्रत्यक्ष दबाव में लाने की रणनीति अपनाई।
ट्रंप की धमकी है कि अगर भारत अमेरिका के साथ प्रस्तावित ट्रेड डील पर सहमत नहीं होता है, तो 26% तक टैरिफ लागू किए जा सकते हैं। हालांकि, अभी तक भारत को आधिकारिक रूप से इस तरह के किसी शुल्क की सूचना नहीं दी गई है, जिससे संकेत मिलता है कि ट्रंप एक रणनीतिक दबाव बना रहे हैं न कि तुरन्त कोई कदम उठाने वाले हैं।
भारत की प्रतिक्रिया: डील हमारी शर्तों पर
भारत ने इस दबाव का जवाब संयमित लेकिन स्पष्ट तरीके से दिया है। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए तैयार है, लेकिन वह किसी समयसीमा या धमकी के आगे झुकेगा नहीं। भारत के लिए कृषि, डेयरी और तकनीकी हस्तांतरण जैसे मुद्दे अत्यंत संवेदनशील हैं।
भारतीय वाणिज्य मंत्री ने हाल ही में बयान दिया कि, “भारत किसी भी व्यापार समझौते के लिए केवल अपने राष्ट्रीय हित के आधार पर निर्णय लेगा, न कि किसी डेडलाइन या दबाव में आकर।” इसका सीधा अर्थ है कि भारत एक संतुलित, समतुल्य और दीर्घकालिक व्यापारिक समझौते की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
क्यों नहीं हो पाई अब तक डील?
अब तक भारत और अमेरिका के बीच फुल-स्कोप ट्रेड डील नहीं हो सकी है क्योंकि दोनों देशों की प्राथमिकताएं अलग हैं:
अमेरिका चाहता है:
भारत में अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों को अधिक एक्सेस मिले।
डेटा लोकलाइजेशन नियमों में ढील दी जाए।
मेडिकल डिवाइसेज़ और टेक उत्पादों पर भारत टैरिफ कम करे।
भारत चाहता है:
अमेरिकी स्टील-एल्यूमिनियम पर टैरिफ में रियायत।
वीज़ा नियमों में नरमी।
अमेरिकी बाजार में भारतीय फार्मा और आईटी को अधिक अवसर।
इन मुद्दों पर संतुलन बनाना आसान नहीं है, इसलिए डील लंबे समय से अटकी हुई है।
वैश्विक दृष्टिकोण: भारत को क्यों चाहिए सतर्कता?
भारत आज विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अमेरिका उसका सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर। ऐसे में भारत को कोई भी निर्णय अत्यंत सोच-समझकर लेना होगा। एकतरफा दबाव या जल्दबाज़ी में की गई डील देश के किसानों, लघु उद्योगों और तकनीकी स्वायत्तता को नुकसान पहुँचा सकती है।
ट्रंप का रुख केवल व्यापारिक नहीं बल्कि चुनावी भी है। उन्हें 2025 के राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिका के मिडवेस्टर्न वोटर्स को प्रभावित करना है, जो कृषि और मैन्युफैक्चरिंग बेस्ड हैं। इस कारण वह भारत को टार्गेट कर सकते हैं — यह सोचते हुए कि अगर भारत से अमेरिकी उत्पादों को एक्सेस मिले, तो घरेलू वोटर्स खुश होंगे।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर ट्रेड डील के लिए रणनीतिक दबाव जरूर बनाया है, लेकिन भारत अब पहले जैसा कमजोर व्यापारिक भागीदार नहीं रहा। भारत स्पष्ट संकेत दे चुका है कि वह “डील करेगा, लेकिन अपने नियमों पर।” भारत-अमेरिका व्यापार संबंध आज नए युग की दहलीज़ पर हैं — जहां परस्पर सम्मान, संतुलन और दीर्घकालिक साझेदारी ही सफलता की कुंजी बन सकती है।
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