चीन बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा ‘वॉटर बम’: भारत और दक्षिण एशिया के लिए गंभीर खतरा

दुनिया के भू-राजनीतिक नक्शे पर जल अब सिर्फ एक प्राकृतिक संसाधन नहीं रह गया है, बल्कि यह शक्ति और दबदबे का नया हथियार बन चुका है। खासकर जब बात चीन की हो, जो न केवल आर्थिक और सैन्य क्षेत्र में विस्तारवादी नीति अपना रहा है, बल्कि अब पानी को भी ‘हथियार’ बनाकर अपने पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। हाल ही में सामने आई रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन तिब्बत क्षेत्र में यारलुंग त्संगपो नदी (जिसे भारत में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है) पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाने की योजना पर काम कर रहा है। यह डैम तकनीकी रूप से एक ‘वॉटर बम’ बन सकता है, जो पर्यावरणीय संतुलन से लेकर मानव जीवन और भू-राजनीति तक को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

 

क्या है चीन का ‘वॉटर बम’ प्रोजेक्ट?

चीन की यह योजना तिब्बत के मेडोग क्षेत्र में यारलुंग त्संगपो नदी पर एक मेगा डैम बनाने की है, जो Three Gorges Dam से भी कई गुना बड़ा और शक्तिशाली होगा। इस डैम से चीन 70,000 मेगावाट तक बिजली उत्पादन करना चाहता है, जो पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता से भी अधिक है। यह प्रोजेक्ट चीन के 14वीं पंचवर्षीय योजना का हिस्सा है, जिसमें ऊर्जा सुरक्षा और जल संसाधनों पर नियंत्रण को प्राथमिकता दी गई है।

भारत क्यों है डेंजर जोन में?

भारत की नजर से यह डैम सिर्फ एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि एक गंभीर रणनीतिक खतरा है। ब्रह्मपुत्र नदी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों – विशेषकर अरुणाचल प्रदेश और असम – के लिए जीवनरेखा है। यह नदी कृषि, जल आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण का मुख्य आधार है। अगर चीन इस नदी के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो भारत में या तो अत्यधिक जलभराव (बाढ़) या गंभीर जल संकट (सूखा) की स्थिति बन सकती है।

इसके अतिरिक्त, यह क्षेत्र भूकंप संवेदी (Seismically active) ज़ोन में आता है। यदि इतना बड़ा डैम किसी भूकंपीय गतिविधि की चपेट में आता है या तकनीकी खामी से फटता है, तो यह पूरे उत्तर-पूर्व भारत में जल प्रलय जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। इसीलिए विशेषज्ञ इसे एक संभावित ‘वॉटर बम’ की संज्ञा दे रहे हैं।

रणनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ

चीन की यह नीति केवल ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है। इसे ‘हाइड्रो डिप्लोमेसी’ या ‘वाटर वॉरफेयर’ की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें वह पानी के ज़रिए अपने पड़ोसियों – भारत, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और लाओस – पर दबाव बना सके।

भारत, जिसकी नदियों में 50% से अधिक पानी तिब्बत से आता है, चीन की इस नीति का सबसे बड़ा शिकार हो सकता है। भारत-चीन के बीच पहले से ही सीमा विवाद (जैसे डोकलाम और गलवान) चल रहे हैं, ऐसे में जल संकट को चीन एक नया रणनीतिक मोर्चा बना सकता है।

पर्यावरणीय खतरे

इतने विशाल पैमाने पर पानी को रोकना, नदी की प्राकृतिक धारा को बदलना, और पारिस्थितिकीय तंत्र (ecosystem) को बाधित करना, हिमालय क्षेत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। ब्रह्मपुत्र जैसी नदी की पारिस्थितिकी बेहद संवेदनशील है, जिसमें जैव विविधता, मछलियों की प्रजातियां, वनस्पति और स्थानीय आदिवासी समुदायों का जीवन जुड़ा हुआ है। डैम बनने से इन सब पर सीधा खतरा मंडरा रहा है।

भारत की प्रतिक्रिया और चुनौतियां

भारत को इस मामले में दो स्तरों पर काम करना होगा –

राजनयिक स्तर पर चीन पर दबाव बनाना, ताकि वह बिना पारदर्शिता के इस तरह की परियोजनाओं पर आगे न बढ़े।

अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाना, ताकि चीन को वैश्विक पर्यावरणीय और मानवीय संधियों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सके।

इसके अलावा भारत को ब्रह्मपुत्र पर अपने स्तर पर जल प्रबंधन, जलाशय निर्माण और निगरानी तंत्र मजबूत करने होंगे। साथ ही नॉर्थ ईस्ट रीजन में जल आपदा प्रबंधन को अत्यधिक प्राथमिकता देने की जरूरत है।

निष्कर्ष

चीन का यह ‘वॉटर बम’ प्रोजेक्ट न सिर्फ तकनीकी और ऊर्जा दृष्टिकोण से विशाल है, बल्कि यह एशिया की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा भी बन सकता है। भारत सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों को इस खतरे के प्रति सजग रहकर संयुक्त रणनीति अपनानी होगी। जल केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि अब रणनीतिक अस्त्र बन चुका है – और इसमें चीन सबसे बड़ा खिलाड़ी बनने की कोशिश में जुटा है।

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