यमन ने भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी पर लगाई रोक: मिली राहत की सांस

 

भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जो यमन में पिछले कई वर्षों से हत्या के मामले में मौत की सज़ा का सामना कर रही थीं, उन्हें बड़ी राहत मिली है। यमन की सरकार और वहां की अदालत ने उनकी फांसी पर अस्थायी रोक (stay) लगा दी है। यह फैसला न सिर्फ निमिषा और उनके परिवार के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह भारत और मानवाधिकार संगठनों की कूटनीतिक सफलता भी मानी जा रही है।

 

 

निमिषा प्रिया के खिलाफ केस 2017 में दर्ज किया गया था, जब यमन में एक स्थानीय नागरिक की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया। आरोपों के मुताबिक, पीड़ित नागरिक को उन्होंने दवा का इंजेक्शन देकर मारा था, और बाद में शव को टुकड़ों में काटकर छिपाने की कोशिश की गई। यह घटना तब हुई जब वह यमन में बतौर नर्स काम कर रही थीं और एक भारतीय मेडिकल क्लिनिक में अपनी सेवाएं दे रही थीं। हत्या का कारण व्यक्तिगत विवाद बताया गया, लेकिन निमिषा ने हमेशा इसे आत्मरक्षा का मामला बताया।

साल 2020 में यमन की अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी थी। तभी से भारत में कई मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन और खुद उनकी मां और बेटी इस सज़ा को रुकवाने के लिए प्रयासरत थे। ‘सेव निमिषा प्रिया’ अभियान भारत और विदेशों में तेज़ी से फैला, जिसमें लोगों ने अपील की कि निमिषा के साथ न्याय किया जाए। भारत सरकार ने भी इस मामले में यमन सरकार के समक्ष कई बार दया याचिका और बातचीत की प्रक्रिया शुरू की।

अब,यमन ने उनकी फांसी पर रोक लगाई है, तो यह माना जा रहा है कि इस मामले में ‘ब्लड मनी’ यानी क्षतिपूर्ति राशि के जरिए सुलह की संभावना बढ़ गई है। इस्लामिक कानून के तहत पीड़ित परिवार अगर दोषी से मुआवजा लेकर माफ कर दे, तो सजा-ए-मौत को रोका जा सकता है। भारत में कई सामाजिक संगठन और लोग अब इस ब्लड मनी की रकम जुटाने के लिए भी आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं।

हालांकि यह फांसी टली जरूर है, लेकिन मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। निमिषा की रिहाई तभी संभव हो पाएगी जब पीड़ित परिवार सहमत होगा या कोई अंतिम न्यायिक राहत मिलती है। इस बीच, भारत सरकार यमन सरकार से लगातार संपर्क में है और कानूनी टीम भी सक्रिय है।

यह मामला यह भी दर्शाता है कि विदेशों में काम करने वाले भारतीय नागरिकों के लिए कानूनी जानकारी और सुरक्षा कितनी जरूरी है। निमिषा प्रिया की यह कहानी न सिर्फ न्याय की लड़ाई है, बल्कि उन हजारों भारतीयों की कहानी भी है जो रोज़ी-रोटी के लिए विदेशों में काम कर रहे हैं और किसी भी अनजाने संकट में पड़ सकते हैं।

Final Thoughts (अंतिम विचार):

निमिषा प्रिया का मामला न सिर्फ एक महिला की ज़िंदगी की लड़ाई है, बल्कि यह विदेशों में काम करने वाले भारतीयों की सुरक्षा, कानूनी सहायता और दूतावास समर्थन पर भी कई अहम सवाल खड़े करता है। यमन द्वारा उनकी फांसी पर रोक लगाना एक उम्मीद की किरण जरूर है, लेकिन यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। अब अगला कदम होगा—पीड़ित परिवार से ब्लड मनी के ज़रिए समझौता करना या कोर्ट से अंतिम राहत पाना।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि जब सरकार, परिवार और समाज एकजुट होते हैं, तो असंभव लगने वाले फैसले भी बदले जा सकते हैं। निमिषा के मामले में यह एक संवेदनशील मोड़ है—जहां इंसानियत, कानून और कूटनीति तीनों की परीक्षा है।

अब यह देखना अहम होगा कि आगे यमन की न्यायपालिका और पीड़ित परिवार इस समझौते पर क्या रुख अपनाते हैं। भारत सरकार और आम जनता को भी इस मामले पर लगातार नज़र बनाए रखनी चाहिए ताकि एक निर्दोष या पछतावे से भरी ज़िंदगी को दूसरा मौका मिल सके।

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