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राधिका यादव मर्डर केस: गुरुग्राम में टेनिस प्लेयर की हत्या ने देश को हिला दिया

राधिका यादव, गुरुग्राम की एक होनहार और महत्वाकांक्षी टेनिस खिलाड़ी, महज 25 साल की उम्र में उस समय दुनिया छोड़ गईं जब उन्हें उनके ही पिता ने गोली मार दी। यह घटना न केवल एक परिवार की निजी त्रासदी है, बल्कि हमारे समाज की उस गहराई तक पहुंचने वाली दरार का प्रतीक है, जहां बेटियों की आज़ादी अब भी सवालों के घेरे में है। राधिका ने हरियाणा और राष्ट्रीय स्तर पर टेनिस में नाम कमाया था, इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन (ITF) में भी उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, और हाल ही में उन्होंने एक टेनिस अकादमी शुरू की थी ताकि वह अपने सपनों को और भी ऊंचाई दे सकें। लेकिन खबरों के अनुसार, उनके पिता दीपक यादव को राधिका की सोशल मीडिया गतिविधियों—खासतौर पर Instagram Reels बनाने और स्वतंत्र रूप से अकादमी चलाने—से आपत्ति थी। एक छोटी सी बहस ने हिंसक मोड़ ले लिया, और पिता ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से उस बेटी को गोली मार दी, जो उनके लिए एक दिन गर्व का कारण बन सकती थी। यह घटना उस खतरनाक मानसिकता को उजागर करती है जिसमें व्यक्तिगत अभिव्यक्ति, डिजिटल पहचान और पेशेवर स्वतंत्रता को अब भी परिवार की ‘इज्जत’ और परंपरा के खिलाफ माना जाता है। यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि समाज के उस हिस्से की असफलता है जो बच्चों को समझने की बजाय नियंत्रित करना चाहता है।

 

 

एक उभरता सितारा जो बुझा दिया गया

राधिका यादव सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, एक प्रेरणा थीं। उन्होंने न सिर्फ हरियाणा में टॉप रैंकिंग हासिल की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ITF महिला डबल्स सर्किट में अपनी पहचान बनाई। वह एक टेनिस अकादमी भी चला रही थीं ताकि खेल को नई पीढ़ी तक पहुंचा सकें।लेकिन अफसोस, उनकी उड़ान को उसी घर में रोक दिया गया जहां से उसने उड़ना सीखा था।

सेक्टर 57, गुरुग्राम: एक खौफनाक सुबह

10 जुलाई 2025 की सुबह, गुरुग्राम के सेक्टर 57 स्थित घर में राधिका को उनके पिता दीपक यादव ने कथित रूप से पांच गोलियां मारीं। तीन गोलियां उनके शरीर में लगीं। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बच सकी।

प्रारंभिक जांच में सामने आया कि घर में Instagram Reels और टेनिस अकादमी को लेकर विवाद था। पिता को उनकी सोशल मीडिया उपस्थिति और स्वतंत्रता से आपत्ति थी।

जब घर बन जाए बंदिशों की दीवार

राधिका की कहानी उन हजारों लड़कियों की कहानी जैसी है जो अपने पैशन और पहचान के लिए परिवार से भी संघर्ष करती हैं। आज के दौर में सोशल मीडिया केवल मनोरंजन नहीं, करियर और ब्रांडिंग का जरिया है। लेकिन कई बार पीढ़ियों के बीच की सोच इतनी अलग होती है कि संवाद

अंतिम निष्कर्ष

राधिका यादव की मौत केवल एक अपराध की खबर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है उस समाज के लिए जो अब भी बेटियों की स्वतंत्रता को अपना अपमान समझता है। एक टेनिस कोर्ट की चमकती खिलाड़ी, जिसने मेहनत से पहचान बनाई, उसे अपने ही घर में चुप करा दिया गया—सिर्फ इसलिए कि उसने अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की कोशिश की। यह घटना बताती है कि केवल बेटियों को आगे बढ़ने का हक देना ही काफी नहीं, उन्हें मानसिक और भावनात्मक आज़ादी भी देना जरूरी है। सोशल मीडिया, करियर, या खुद की पहचान बनाने की कोशिश अब कोई बगावत नहीं, बल्कि एक नई पीढ़ी की जरूरत है। अगर हम राधिका जैसी बेटियों को खोते रहे, तो सवाल केवल इंसाफ का नहीं रहेगा, बल्कि हमारी सामाजिक सोच की हार का होगा। राधिका अब नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है—बदलाव जरूरी है, और वह घर से शुरू होना चाहिए।

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