विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मंच पर एक बार फिर भारत और अमेरिका आमने-सामने हैं। यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब वैश्विक व्यापार व्यवस्था पहले से ही भू-राजनीतिक तनावों, आर्थिक मंदी और संरक्षणवाद के बढ़ते रुझानों से जूझ रही है। अमेरिका ने अपने घरेलू कानूनों का हवाला देते हुए कुछ भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त टैरिफ लगाए, जिसके जवाब में भारत ने WTO के समक्ष सख्त आपत्ति जताई है।
क्या है पूरा मामला?
विवाद की जड़ 2018 में है, जब अमेरिका ने “राष्ट्रीय सुरक्षा” का हवाला देते हुए स्टील और एल्युमिनियम जैसी वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगा दिए। इसका असर सिर्फ भारत नहीं, बल्कि कई अन्य देशों पर भी पड़ा। अमेरिका का कहना था कि यह टैरिफ उसके Trade Expansion Act – Section 232 के तहत लगाए गए, जो उसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक आर्थिक उपाय करने का अधिकार देता है।
भारत ने इसका विरोध करते हुए इसे WTO के नियमों के खिलाफ बताया और अमेरिका से इस फैसले को वापस लेने की मांग की। भारत का दावा है कि इस कदम से उसके स्टील और एलुमिनियम निर्यात को भारी नुकसान हुआ है और यह मुक्त व्यापार (Free Trade) की भावना के खिलाफ है।
अमेरिका का पक्ष: कानून पहले
WTO में अमेरिका का कहना है कि उसके पास अपने घरेलू कानूनों के अनुसार टैरिफ लगाने का संवैधानिक अधिकार है। अमेरिका ने कहा कि वह कोई भी कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ले सकता है और WTO इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
Section 232 अमेरिका को यह अनुमति देता है कि वह किसी भी वस्तु पर टैरिफ या अन्य व्यापार प्रतिबंध लगा सकता है यदि वह देश की सुरक्षा को खतरे में डालता है।
भारत का जवाब: अंतरराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं
भारत ने अमेरिका के इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि यदि हर देश अपने घरेलू कानूनों का बहाना बनाकर WTO नियमों को ताक पर रखेगा, तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था बिखर जाएगी। भारत ने WTO के सामने इस मुद्दे पर निर्णायक कार्यवाही की मांग की है।
भारत का मानना है कि अमेरिका की यह नीति “प्रोटेक्शनिज्म” (संरक्षणवाद) को बढ़ावा देती है और विकासशील देशों के निर्यात को नुकसान पहुंचाती है। भारत ने यह भी कहा कि अमेरिकी टैरिफ ने उसके मैन्युफैक्चरर्स और SMEs को आर्थिक झटका दिया है।
WTO की भूमिका और अब तक की कार्रवा
WTO इस विवाद को Dispute Settlement Body (DSB) के तहत देख रहा है। भारत ने औपचारिक शिकायत दर्ज कर एक पैनल गठन की मांग की थी। WTO ने एक जांच पैनल बनाया जो अब अमेरिका और भारत के दावों पर कानूनी समीक्षा कर रहा है। हालांकि अमेरिका ने इस पैनल की प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए हैं और इसमें सहयोग की गति धीमी रखी है।
WTO के इतिहास में यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर टैरिफ लगाए हों, लेकिन इस बार भारत का रुख बेहद सख्त और स्पष्ट है।
इसका वैश्विक प्रभाव
यह विवाद सिर्फ भारत और अमेरिका के बीच का नहीं है। इससे WTO की साख और भविष्य पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि WTO अमेरिका जैसे बड़े देश की मनमानी पर रोक नहीं लगा पाता, तो यह संस्था विकासशील देशों के लिए सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएगी।
इसके अलावा, इस विवाद ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक व्यापार अब पूरी तरह से नियम-आधारित नहीं रह गया है। अमेरिका जैसी ताकतें घरेलू कानूनों के बहाने अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश कर रही हैं।भारत की रणनीति और आगे की राह
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह WTO जैसे मंचों पर अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए पूरी ताकत से लड़ेगा। भारत ने जवाबी कार्रवाई के रूप में अमेरिका से आने वाली वस्तुओं पर प्रतिशोधी शुल्क (Retaliatory Tariffs) लगाए थे। भारत की इस आक्रामक रणनीति को घरेलू उद्योगों का समर्थन भी मिला है।
भारत अब अन्य देशों के साथ मिलकर WTO में एक सामूहिक आवाज उठाने की तैयारी में है ताकि ऐसे टैरिफ को चुनौती दी जा सके जो एकतरफा और असंतुलित हैं।
निष्कर्ष: क्या WTO अब भी प्रभावी है?
भारत-अमेरिका टैरिफ विवाद इस बात का प्रमाण है कि WTO जैसी संस्थाओं की प्रासंगिकता अब परीक्षा के दौर में है। अगर WTO अमेरिका जैसे बड़े देशों की मनमानी पर रोक नहीं लगाता, तो अन्य सदस्य देशों का विश्वास इस संस्था से उठ जाएगा।
भारत का सख्त रुख यह दर्शाता है कि वह अब वैश्विक मंचों पर अपने हितों की रक्षा करने के लिए तैयार है, चाहे वह व्यापार हो या कूटनीति। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि WTO इस विवाद का क्या समाधान निकालता है और क्या वह नियम आधारित व्यापार प्रणाली को बनाए रखने में सफल होता है या नहीं।