भारतीय सेना द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तुरंत बाद पाकिस्तान में राजनीतिक और सैन्य हलचल के बीच एक ऐसा राजनयिक घटनाक्रम सामने आया जिसने अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक समीकरणों को फिर से चर्चा में ला दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत के हमले के बाद न सिर्फ चीन बल्कि तुर्की के राजदूत भी सक्रिय हो गए और खास बात यह रही कि तुर्की के राजदूत रात करीब 3 बजे पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय पहुंचे। यह असामान्य समय इस बात का प्रतीक था कि पाकिस्तान ने युद्ध जैसे हालात की आशंका के चलते अपने करीबी सहयोगियों से आपातकालीन समर्थन की अपील की थी।
तुर्की ने न केवल कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान का साथ देने का आश्वासन दिया, बल्कि रणनीतिक सहयोग के तहत उन्नत हथियार प्रणाली, जैसे कि Bayraktar TB2 ड्रोन, खुफिया साझेदारी और जरूरत पड़ने पर सैन्य तकनीकी सहायता देने का प्रस्ताव भी रखा। इससे पहले चीन के राजदूत भी इसी दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय में पहुंच चुके थे, जहां दोनों देशों के बीच गहन रणनीतिक चर्चा हुई। इन घटनाओं से साफ होता है कि पाकिस्तान ने अपने पारंपरिक मित्र देशों को तुरंत सक्रिय कर दिया, जिससे भारत को यह संदेश देने की कोशिश की गई कि कोई भी एकतरफा सैन्य कार्रवाई क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दे सकती है। यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि आज के दौर में युद्ध सिर्फ बंदूकों और मिसाइलों से नहीं लड़े जाते, बल्कि गहरी रणनीति, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और समय पर लिए गए निर्णयों से भी उनकी दिशा तय होती है। रात के अंधेरे में तुर्की और चीन का पाकिस्तान के साथ खड़ा होना इस बात का सबूत है कि भू-राजनीतिक रिश्ते कितने जटिल और संवेदनशील हो चुके हैं।
तुर्की और चीन की प्रतिक्रिया बताती है कि भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति को अब केवल एक सीमित खतरे के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि यह क्षेत्रीय सामरिक संतुलन को पुनः परिभाषित करने वाला तत्व बन चुका है। यह भी पहली बार है जब तुर्की ने इतनी स्पष्टता से पाकिस्तान के साथ युद्ध-संभावित स्थिति में कदम से कदम मिलाने का संकेत दिया है, जिससे भारत, पश्चिमी देश और संयुक्त राष्ट्र सभी को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा है कि एशिया का यह इलाका अब एक नए तरह के भू-राजनीतिक द्वंद्व की ओर बढ़ रहा है।
क्या हुआ था उस रात?
भारत की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान पर आंतरिक दबाव, जनता का आक्रोश और अंतरराष्ट्रीय दबाव तीनों ही चरम पर थे। ऐसे में तुर्की के राजदूत का रात के 3 बजे पहुंचना सिर्फ एक समर्थन नहीं बल्कि एक आपात ‘ऑफर’ था—जिसमें पाकिस्तान को Bayraktar TB2 जैसे हथियारबंद ड्रोन, खुफिया तकनीक, और सामरिक सहायता की पेशकश शामिल थी।
वहीं चीन के राजदूत ने भी कुछ ही घंटों पहले इसी मंत्रालय में बैठक की थी, जो बताता है कि यह एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश थी।
तुर्की का ‘बड़ा ऑफर’
सूत्रों के मुताबिक तुर्की ने न केवल हथियार प्रणाली देने की बात कही, बल्कि पाकिस्तान को भरोसा दिया कि “यदि हालात और बिगड़ते हैं, तो तुर्की सैन्य समर्थन पर भी विचार कर सकता है।” यह ऑफर भारत के लिए एक सीधा संदेश था कि पाकिस्तान अकेला नहीं।
निष्कर्ष
‘ऑपरेशन सिंदूर’ भले ही भारत की सैन्य सफलता रहा हो, लेकिन इसका राजनयिक असर भी उतना ही बड़ा था। पाकिस्तान ने रात के अंधेरे में अपने पुराने साथियों को पुकारा और चीन-तुर्की ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। यह घटना हमें यह सिखाती है कि सिर्फ मिसाइल या बॉर्डर नहीं, कूटनीति के गलियारों में भी युद्ध लड़ा जाता है, और कई बार रात के 3 बजे लिए गए फैसले इतिहास की दिशा बदल देते हैं।