पाकिस्तान ने 12 हिंदू तीर्थयात्रियों को ननकाना साहिब में गुरु नानक जयंती के अवसर पर प्रवेश से रोका

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पाकिस्तान ने 12 हिंदू तीर्थयात्रियों को ननकाना साहिब में गुरु नानक जयंती के अवसर पर प्रवेश से रोका

पाकिस्तान ने 12 हिंदू तीर्थयात्रियों को ननकाना साहिब में गुरु नानक जयंती के अवसर पर प्रवेश से रोका

भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राओं को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में पाकिस्तान सरकार ने भारत के 12 हिंदू तीर्थयात्रियों को ननकाना साहिब में प्रवेश से रोक दिया, जो गुरु नानक देव जी की जयंती मनाने के लिए वहां जा रहे थे। यह घटना न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है बल्कि दोनों देशों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर भी सवाल खड़े करती है।

गुरु नानक जयंती और ननकाना साहिब का महत्व

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और महान संत थे, जिन्होंने पूरी मानवता को समानता, प्रेम, और भाईचारे का संदेश दिया। हर साल उनका जन्मदिन बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित ननकाना साहिब वही पवित्र स्थल है जहां गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। यह स्थान सिखों के लिए सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है।

हर वर्ष भारत सहित दुनिया भर से हजारों श्रद्धालु गुरु नानक जयंती के अवसर पर ननकाना साहिब पहुंचते हैं। यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का भी प्रतीक होती है। सिखों के साथ-साथ कई हिंदू श्रद्धालु भी इस यात्रा में भाग लेते हैं, क्योंकि गुरु नानक देव जी का संदेश केवल एक धर्म तक सीमित नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए था।

12 हिंदू तीर्थयात्रियों को क्यों नहीं दी गई अनुमति?

भारत से 12 हिंदू श्रद्धालु गुरु नानक जयंती के अवसर पर ननकाना साहिब जाने के लिए तैयार थे। वे सभी आवश्यक दस्तावेजों और अनुमतियों के साथ पाकिस्तान जाने पहुंचे थे। लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया।
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ने सुरक्षा कारणों और प्रशासनिक औपचारिकताओं का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया। कहा गया कि कुछ तीर्थयात्रियों के कागजात “अधूरे” या “संदिग्ध” थे, जिसके चलते उन्हें अनुमति नहीं दी जा सकी।

हालांकि, भारतीय पक्ष का कहना है कि सभी दस्तावेज सही थे और तीर्थयात्रियों ने पाकिस्तान हाई कमीशन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन किया था।

भारतीय विदेश मंत्रालय की कड़ी प्रतिक्रिया

भारत के विदेश मंत्रालय ने इस घटना पर गहरी नाराजगी जताई। मंत्रालय ने पाकिस्तान के इस कदम को धार्मिक स्वतंत्रता और आपसी समझ के खिलाफ बताया।
मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा,

“गुरु नानक देव जी की जयंती एक पवित्र अवसर है जो भारत और पाकिस्तान के करोड़ों लोगों को जोड़ता है। पाकिस्तान द्वारा हिंदू तीर्थयात्रियों को प्रवेश से रोकना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है और धार्मिक सहिष्णुता की भावना के विपरीत है।”

भारत ने पहले भी कई बार पाकिस्तान से आग्रह किया है कि धार्मिक यात्राओं में राजनीति या प्रशासनिक जटिलताओं को न जोड़ा जाए। क्योंकि ये यात्राएं लोगों के बीच आपसी भरोसे को मजबूत करने का जरिया हैं।

पाकिस्तान का पक्ष — सुरक्षा का हवाला

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर अपनी सफाई देते हुए कहा कि जिन तीर्थयात्रियों को प्रवेश से रोका गया, उनके दस्तावेज़ अधूरे थे या सुरक्षा एजेंसियों ने उनकी यात्रा पर आपत्ति जताई थी। पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारत से आने वाले सिख जत्थों के लिए सभी व्यवस्थाएं की हैं और उन्हें पूर्ण सहयोग दिया जा रहा है।

पाकिस्तान के प्रवक्ता ने कहा,

“हम सिख श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं। लेकिन किसी भी यात्रा की अनुमति सुरक्षा एजेंसियों की मंजूरी पर निर्भर करती है। जिन लोगों के दस्तावेज अधूरे थे, उन्हें अनुमति देना संभव नहीं था।”

भारत-पाकिस्तान धार्मिक यात्राओं पर पुराना विवाद

भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राएं हमेशा से ही संवेदनशील मुद्दा रही हैं। दोनों देशों के बीच कई धार्मिक स्थल हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व सीमाओं के पार है। पाकिस्तान में ननकाना साहिब, करतारपुर साहिब, पंजा साहिब जैसे सिख धर्म के प्रमुख स्थल हैं, जबकि भारत में भी कई ऐसे स्थान हैं जो मुस्लिम तीर्थयात्रियों के लिए अहम हैं।

हर साल दोनों देशों के बीच ‘पिलग्रिम्स एग्रीमेंट’ (Pilgrimage Agreement) के तहत श्रद्धालुओं को यात्रा की अनुमति दी जाती है। लेकिन अक्सर वीज़ा, सुरक्षा और प्रशासनिक कारणों से कई यात्राएं रद्द या बाधित हो जाती हैं।

करतारपुर कॉरिडोर की पृष्ठभूमि

2019 में शुरू किया गया करतारपुर कॉरिडोर दोनों देशों के बीच शांति और आपसी सद्भाव का प्रतीक माना गया था। इस कॉरिडोर के माध्यम से भारत के सिख श्रद्धालु बिना वीज़ा के पाकिस्तान के करतारपुर साहिब गुरुद्वारे तक पहुंच सकते हैं।
इससे उम्मीद जगी थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच धार्मिक यात्राएं सुगम और विवाद-मुक्त होंगी। लेकिन हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब वीज़ा अस्वीकृति या प्रशासनिक देरी के कारण तीर्थयात्री यात्रा नहीं कर पाए।

श्रद्धालुओं में निराशा और आक्रोश

ननकाना साहिब की यात्रा से वंचित हुए 12 हिंदू तीर्थयात्री बेहद निराश हैं। उनका कहना है कि उन्होंने महीनों पहले तैयारी शुरू की थी, सभी दस्तावेज पूरे किए थे और बड़ी श्रद्धा के साथ यह यात्रा करने का सपना देखा था।
एक तीर्थयात्री ने मीडिया से बातचीत में कहा,

“हम किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं बल्कि केवल धार्मिक भावना से यात्रा पर जा रहे थे। पाकिस्तान द्वारा इस तरह रोका जाना बहुत दुखद है। गुरु नानक देव जी ने तो सभी धर्मों में समानता का संदेश दिया था।”

इस घटना ने कई धार्मिक संगठनों को भी नाराज किया है। भारत में कई सिख और हिंदू संगठनों ने पाकिस्तान सरकार के इस रवैये की आलोचना की और इसे धार्मिक भेदभाव बताया।

दोनों देशों के संबंधों पर असर

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते पहले से ही तनावपूर्ण हैं, और इस तरह की घटनाएं रिश्तों में और दरार पैदा करती हैं। धार्मिक यात्राएं दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद का माध्यम हो सकती हैं, लेकिन ऐसे निर्णय लोगों के बीच के भरोसे को कमजोर करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब दोनों देशों के बीच संवाद के रास्ते पहले से बंद हों, तो धार्मिक यात्राओं को प्रतिबंधित करना एक गलत संदेश देता है। इससे आम लोगों की भावनाओं पर गहरा असर पड़ता है।

धार्मिक स्वतंत्रता और मानवता का सवाल

गुरु नानक देव जी का संदेश सीमाओं से परे था। उन्होंने कहा था —

“न हिन्दू न मुसलमान, सब एक ही परमात्मा की संतान हैं।”

ऐसे में जब उनके अनुयायियों को सीमाओं के नाम पर रोका जाता है, तो यह उनके सिद्धांतों के विपरीत है। धार्मिक स्वतंत्रता किसी भी सभ्य समाज की मूल पहचान है, और उसका सम्मान करना सभी देशों की जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष

गुरु नानक देव जी की जयंती के अवसर पर पाकिस्तान द्वारा 12 हिंदू तीर्थयात्रियों को ननकाना साहिब जाने से रोकना निश्चित रूप से एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। यह निर्णय न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत करता है बल्कि दक्षिण एशिया में शांति और सद्भाव की कोशिशों को भी कमजोर करता है।

धर्म का उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि एकता है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जाए और दोनों देश यह सुनिश्चित करें कि तीर्थयात्राएं राजनीति से ऊपर उठकर केवल आस्था और मानवता का माध्यम बनें।

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