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निमिषा प्रिया फांसी मामला: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा – ‘अभी कुछ औपचारिक नहीं हो सकता, माफ़ी जरूरी’

यमन में बंदी भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी की सज़ा को लेकर भारत में बहस तेज हो गई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा कि “इस समय औपचारिक रूप से कुछ नहीं किया जा सकता है जब तक कि मृतक के परिवार द्वारा क्षमा नहीं दी जाती।” यह बयान तब आया जब कोर्ट ने पूछा कि भारत सरकार निमिषा प्रिया को बचाने के लिए क्या कदम उठा रही है।

निमिषा प्रिया पर यमन में अपने यमनी साझेदार की हत्या करने का आरोप है, जिसके लिए उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया है। यह मामला भारत में मानवीय और कूटनीतिक दृष्टिकोण से काफी संवेदनशील बन गया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उन्होंने यमन में स्थित भारतीय दूतावास के माध्यम से सभी आवश्यक प्रयास किए हैं, लेकिन यमन का कानून स्पष्ट है – अगर मृतक का परिवार क्षमा कर देता है, तभी फांसी टल सकती है।

सरकार ने यह भी कहा कि अब यह मामला “दिया (blood money)” और “माफ़ी” के इर्द-गिर्द घूमता है। इस्लामिक कानून के अनुसार, यदि पीड़ित का परिवार अपराधी को माफ कर दे और एक तय मुआवज़ा स्वीकार कर ले, तो मौत की सजा को बदला जा सकता है। लेकिन मृतक का परिवार अभी भी माफ करने को तैयार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि यमन की संप्रभुता का सम्मान करना होगा और भारत सरकार इस विषय पर केवल मानवीय आधार पर कूटनीतिक प्रयास ही कर सकती है, कानूनी दखल नहीं। निमिषा की मां और परिजन इस सजा को रोकने के लिए लगातार भारत सरकार और कोर्ट से अपील कर रहे हैं, वहीं देश भर में कई मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने निमिषा के पक्ष में आवाज उठाई है।

परिवार की माफ़ी है निर्णायक बिंदु
यमन की अदालत में निमिषा प्रिया पर एक यमनी नागरिक की हत्या का आरोप सिद्ध हो चुका है और उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया है। भारतीय अदालतों और मानवाधिकार संगठनों के माध्यम से यह अपील की जा रही है कि मानवीय आधार पर सज़ा को उम्रकैद में बदला जाए। मगर यमन में ‘क़िसास’ कानून के अंतर्गत केवल मृतक का परिवार ही माफ़ी देकर दंड से राहत दिला सकता है।

निष्कर्ष
निमिषा प्रिया की फांसी का मामला सिर्फ एक कानूनी नहीं बल्कि मानवीय संकट भी बन गया है। भारत सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है, लेकिन अंतिम फैसला मृतक के परिवार के हाथ में है। इस मामले ने यह भी दिखाया कि अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रणाली में मानवीय पहलू और सांस्कृतिक कानून किस प्रकार टकराते हैं। ऐसे में एकमात्र आशा यही है कि मृतक के परिजन दया और क्षमा का रास्ता अपनाएं ताकि निमिषा को जीवनदान मिल सके।

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